यह एक वास्विक घटनाओ से प्रेरित परन्तु काल्पनिक कहानी है। तस्वीरें केवल प्रस्तुतीकरण हेतु हैं उनमें दर्शाए गए लोगों का कथा से कोई संबंध नहीं है। इस कहानी की पिछली कड़ियाँ यहाँ पढ़ें:

भाग १ |भाग २ |भाग ३ |भाग ४ |भाग ५ |भाग ६ | भाग ७ |

प्रस्तुत है कहानी कि आठवी कड़ी:

शायद पुलिसवालों को यह मालूम हो गया था कि मैं ही पॉल को ले गया हूँ। मैंने मम्मी को बोला कि वो घबराए नही। गाँव का एड्रेस तो गलती से भी न दे। फ़ोन काटने के बाद मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न ही हो गया। समझ ही नहीं आ रहा था कि आगे क्या किया जाए। तभी मुझे ख्याल आया कि क्यों न पॉल के घर के ईमेल आई.डी. पर मेल डाल दी जाए। शायद उसके घरवाले किसी सॉफ्टवेयर या किसी जानकर की मदद से ईमेल को इंग्लिश से फ्रेंच में ट्रांसलेट कर लें। मैंने बाइक उठाई। गाँव में स्थित एक मात्र नेट कैफ़े की तरफ बढ़ चला। घर लौटती भैसों को पछाड़ते हुए कैफ़े पहुंचा। पॉल के माँ-पिताजी के नाम ईमेल लिखकर उन्हें पूरा किस्सा लिख डाला। मैंने उन्हें अपना कांटेक्ट क्रमांक और गाँव का एड्रेस भी लिख दिया। उन्हें समझाया भी कि प्लीज पुलिस को इस बारे में नहीं बताये। यही प्राथना करने लगा कि जैसे भी हो वो इस मेल को ट्रांसलेट कर लें। मैं घर वापिस आ गया। खाना खाने के बाद ख्याल आया कि अगर पुलिसवाले मुझे तलाश कर रहे हैं तो वो मेरे मोबाइल से मुझे ट्रेस कर गाँव तक भी पहुँच सकते हैं। यही सोचकर मैं वापिस कैफ़े गया।

'पॉल एक गाथा' (८/८) | तस्वीर: एकलव्य | सौजन्य: क्यूग्राफी |

‘पॉल एक गाथा’ (८/८) | तस्वीर: एकलव्य | सौजन्य: क्यूग्राफी |

एक दूसरी मेल पॉल के माँ-बाप के नाम लिखी। उन्हें ताउजी का फ़ोन नं दिया। उन्हें ताउजी के नं पर कांटेक्ट करने को कहा। घर जाकर मैंने ताउजी को सारी बात विस्तार से बता दी। अपना मोबाइल ऑफ कर दिया। पॉल को इस बारे में ज़रा-सा भी अंदाज नहीं था। वो तो छोटू के साथ गाँव के तलाब पर चला गया था। ताउजी ने मुझे दिलासा देते हुए कहा, “घबराने की कोई जरुरत नहीं है। सब ठीक हो जायेगा।” लेकिन मेरा मन बहुत घबरा रहा था। अगर पुलिसवाले मुझे ट्रेस करते-करते गाँव पहुँच गए तो वो पॉल को फिर से उसी नरक में पहुचा देंगे। मैंने ताउजी से कहा कि मुझे इसी वक्त पॉल के साथ गाँव छोड़ना होगा। मेरा एक दोस्त दिल्ली में रहता था। उसे पॉल के बारे में मैंने बताया था। मैंने उससे बात की। झूठ बोला कि पॉल को दिल्ली में एक डॉक्टर को दिखाना है इस लिए मैं और पॉल दिल्ली आ रहे हैं। उसने आगे से कहा कि हम लोग चाहे तो उसके घर आकर रह सकते हैं। वो दिल्ली में अकेला ही रहता था। मैंने फटाफट अपने एवं पॉल के कपडे बैग में पैक किये। पॉल को लेकर हाईवे पर आ गया। वहाँ से दिल्ली जानेवाली बस में हम दोनों सवार हो गए।

पॉल एक गाथा (८/८) | तस्वीर: कार्तिक शर्मा | सौजन्य: क्यूग्राफी

पॉल एक गाथा (८/८) | तस्वीर: कार्तिक शर्मा | सौजन्य: क्यूग्राफी

मैंने ताउजी और मम्मी को हिदयात दी थी कि वो मुझे फ़ोन न करें। मैं उन्हें दिल्ली पहुँच कर पब्लिक बूथ से फ़ोन करूँगा ताकि अगर उनका भी फ़ोन ट्रेस हो रहा हो तो पुलिस को हमारी सही-सही लोकेशन न मिल सके। जयपुर आते ही मैंने अपनी सिम निकालकर एक कचरे के डिब्बे में फ़ेंक दी। शाम को दिल्ली पहुँच कर मैंने पब्लिक फ़ोन से ताउजी को फ़ोन किया। उन्होंने बताया कि फ्रांसीसी एम्बेसी से फ़ोन आया था। पॉल के घरवालो को मेल मिल गयी थी। उन्होने फ्रेंच एम्बेसी को सारा किस्सा लिख भेजा था। एम्बेसी ने ताउजी को सम्पर्क किया। मुझे फ्रेंच एम्बेसी के मिस्टर से जल्द से जल्द सम्पर्क करने को कहा। मैंने ताउजी से मिस्टर मिचेल का फ़ोन नं लिया। उन्हें फ़ोन किया। उन्होंने सारी बात सुनी। मुझ से मेरे रुकने की जगह का पता लिया। कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है। वो अपने लोगो के साथ एक घंटे में वहाँ पहुँच रहे हैं। तकरीबन एक घंटे बाद एम्बेसी से तीन आदमी आ गए। आते ही उन्होंने मेरे पॉल के बारे में पुछा। पॉल के डाक्यूमेंट्स माँगे, जो मेरे पास नहीं थे।

पॉल एक गाथा (८/८) | तस्वीर: मृणाल चन्द्र दत्त | सौजन्य: क्यूग्राफी

पॉल एक गाथा (८/८) | तस्वीर: मृणाल चन्द्र दत्त | सौजन्य: क्यूग्राफी

उन्होंने पॉल से फ्रेंच में कुछ बात करने की कोशिश भी की। पर पॉल उन्हें लगातार देखे जा रहा था। उसके चहरे पर कोई भाव नहीं थे। उन्होंने मुझसे कहा कि पॉल के माँ-बाप आने तक वो उसे अपने साथ एम्बेसी में ही रखेंगे। उन्होंने मुझे धन्यवाद किया। पॉल को ले जाने लगे। मैंने उन्हें हिदयात दी थी कि उसकी मानसिक हालत अभी भी ठीक नहीं है। सो उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ा जाये। पॉल से अलग होने की बात को लेकर मेरा दिल भारी हो चला था। लेकिन उसे सुरक्षित हाथो में देखकर दिल को थोड़ा सुकून भी था। पर जैसे ही उन्होंने पॉल से चलने के लिए कहा उसने उनके साथ जाने से मना कर दिया। वो किसी घबराये हुए बच्चे की तरह मुझसे आकर चिपट गया और रोने लगा। एम्बेसी से आये लोगों ने उसे समझाने की कोशिश की। लेकिन पॉल बहुत घबरा गया था। वो लगातार मुझ से चिपटा हुआ रोये जा रहा था। आख़िरकार यह निर्णय हुआ कि पॉल के माँ बाप के आने तक मैं भी पॉल के साथ एम्बेसी में ही चल के रहूँ। हम लोगो को एम्बेसी के गेस्ट हाउस में एक रूम दे दिया गया। हम दोनों के आराम एवं खाने-पीने का एम्बेसी स्टाफ द्वरा पूरा ख्याल रखा जा रहा था।

'पॉल एक गाथा' (७/८) | तस्वीर: फेबियन हार्टवेल | तस्वीर केवल प्रस्तुतीकरण हेतु|

‘पॉल एक गाथा’ (७/८) | तस्वीर: फेबियन हार्टवेल | तस्वीर केवल प्रस्तुतीकरण हेतु|

मैंने ताउजी और मम्मी को फ़ोन कर सब कुछ बता दिया। दो दिन बाद पॉल के माँ-बाप भी आ गए। उन्हें देखते ही पॉल उनसे मिलकर बहुत रोया। उसके माँ-बाप ने मुझे उसका ध्यान रखने के लिए बहुत बार शुक्रिया किया। फिर दो दिनों बाद मैं वापिस अजमेर लौट आया। पॉल को उसके माँ-बाप अपने साथ फ्रांस ले गए। वहाँ उसका इलाज शुरू हो गया। अब उसकी हालत बेहतर थी। पॉल और उसके माँ-बाप फ़ोन अथवा मेल पर मुझसे लगातार सम्पर्क में रहे। ८ महीनों बाद एक दिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मैं हॉस्पिटल से घर पहुचा और पॉल और उसके माँ-बाप को अपने घर पर पाया। उन्होंने मुझे सरप्राइज दिया था। पॉल मुझे देखते ही लिपट गया। हम दोनों लगातार रोये जा रहे थे। हमें ता देखकर दोनों के घरवाले भी रो रहे थे। कुछ दिन घर में रहने के बाद पॉल ने मुझसे शादी करने का प्रपोस रखा। मैंने भी जल्द से हाँ भर दी। आज पॉल और मैं फ्रांस में ही रहते हैं। हमें साथ रहते हुए ८ साल हो गए हैं। पॉल अब डॉक्टर है। मैं अब घर पर ही रहता हूँ। लोरेन और रोबर्ट का ध्यान रखता हूँ। अरे मैं तो आपको लोरेन और रोबर्ट के बारे में बताना ही भूल गया! लोरेन और रॉबर्ट हमारे दो बच्चे है जिन्हें हमने गोद लिया है।

'पॉल एक गाथा' (७/८) | तस्वीर: फेबियन हार्टवेल |

‘पॉल एक गाथा’ (७/८) | तस्वीर: फेबियन हार्टवेल | तस्वीर केवल प्रस्तुतीकरण हेतु |